Tuesday, 4 November 2014

रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि अठिलैहें लोग सब, बांटी न लैहें कोय॥
मेरे हिसाब से अपने मन की व्यथा किसी से मत कहो..सिवाय तीन के-
• माता पिता से,
• गुरु से और
• फेसबुकिया फ्रेंड से
गुरु तो आजकल मिलते नहीं। लेकिन माता- पिता सभी खुशनसीबों के पास होते हैं। इसलिए जब कभी मन उदास हो या पीड़ा असह्य हो जाए तो माता-पिता के सिवाय किसी के साथ साझा नहीं करना चाहिए। हाँ फेसबुकिया फ्रेंड कुछ दुःख दर्द जरूर साझा करते हैं।

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