भेड़ बकरियों की तरह लोग रेल में चलने को मजबूर हैं। पूरा किराया देने के बावजूद टायलेट में सफ़र कर रहे हैं लोग। जो भी हो रेल में सुधार पहली दफा लालू जी ने किया था। अब तो तत्काल के नाम पर पैसा ऐंठने वाली संस्था बन गयी है रेलवे। अगर आकस्मिक यात्रा करनी पड़े तो भगवान भरोसे होगी आपकी यात्रा। उसमें रेलवे आपकी कोई मदद नहीं कर सकता, वह तो दंड के साथ केवल टिकट दे सकता है। क्या यह कम है रेलवे की व्यवस्था आजादी के इतने सालों बाद ? सरकार कोई भी हो, रेलवे में सुधार की अपार आवश्यकता है। परन्तु कब और कैसे होगा यह रेलवे भी नहीं बता सकता।
No comments:
Post a Comment