Wednesday, 24 December 2014

खुदा सलामत रखे सब बन्दों को 
ए परवर दिगार हमें दो इतना ताकत 
सबके नन्हे-मुन्हें जियें सालों-साल
न हो पेशावर जैसी कोई नापाक हरकत 
उन नामुरादों को तुम ही दो सजा 
सब्र की सीमा अब हो गयी है पार।

Tuesday, 16 December 2014

जब हम किसी की सहायता करते हैं तो वास्‍तव में हम अपनी ही सहायता कर रहे होते हैं। चाहे वह भौतिक साधनों के रूप में हो या ज्ञान। जब भी कोई व्‍यक्ति आपसे कुछ मांगने आता है, तो सृष्टि के नैसर्गिक नियम के अनुसार प्रकृति ने मांगने वाले के रूप में उस व्‍यक्ति का और देने वाले के रूप में आपका चुनाव किया है। अब सहायता करनी है या नहीं करनी है, यह आपकी खुद की इच्‍छा पर निर्भर है। इच्‍छा की यही स्‍वतंत्रता हमें ईश्‍वर द्वारा स्‍थापित पूर्व नियतता से मुक्‍त करती है। एक कहावत के अनुसार आप दूसरों को जो कुछ देते हैं, वह वास्‍तव में आप बचा रहे हैं और जो कुछ आप अपने पास रखते हैं वह वास्‍तव में खो देते हैं। देने के साथ ही आपकी चेतना का विस्‍तार अपनी शरीर से बाहर निकलकर आपकी सहायता के विस्‍तार तक फैल जाता है। जब आप सहायता करने से इनकार कर देते हैं तो आपकी चेतना सिकुड़कर आप के भीतर ही कहीं कुंठित हो जाती है। ऐसे में सहायता करना आपको बढ़ाता है और इनकार करना आपको कुंठित करता है। प्रकृति ने आपकी मदद की है सहायता की इच्‍छा वाले व्‍यक्ति को आप तक पहुंचाने की। आखिर में सहायता करने के बाद यह अहंकार का भाव भी न रखिए कि सहायता आपने की है। बस आपका चुनाव किया गया कि आपके जरिए सहायता की जानी है और इसके बदले में भविष्‍य में आपको भी ऐसी या इससे बेहतर सहायता मिल सकेगी।
यह जरूरी नहीं है कि गुरु कोई व्यक्ति हो। 
गुरु शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है। गु और रु, ‘गु’ के मायने हैं अंधकार और ‘रु’ का मतलब है भगाने वाला। कोई भी चीज या इंसान, जो आपके अंधकार को मिटाने का काम करता है, वह आपका गुरु है। यह कोई ऐसा इंसान नहीं है जिससे आपको मिलना जरूरी हो। गुरु तो एक तरह की रिक्तता है, एक विशेष प्रकार की ऊर्जा है। यह जरूरी नहीं है कि गुरु कोई व्यक्ति हो। लेकिन आप एक गुरु के साथ, जो शरीर में मौजूद हो, खुद को बेहतर तरीके से जोड़ सकते हैं, आप अपनी शंकाओं का समाधान कर सकते हैं। एक सच्चा जिज्ञासु, एक ऐसा साधक जिसके दिल में गुरु को पाने की प्रबल इच्छा होती है, वह हमेशा उसे पा ही लेता है। इसमें कोई शक की गुंजाइश नहीं है। जब भी कोई वास्तव में बुलाता है, याचना करता है तो अस्तित्व उसका उत्तर जरूर देता है।
कैसी तरक्की किसकी तरक्की कौन हुआ खुशहाल ?
दुनिया बदली सत्ता बदली बदले गांव बाजार ,
पर गरीब का हाल न बदला आई गई सरकार..
'सत्यम ब्रूयात, प्रियं ब्रूयात, मा ब्रूयात सत्यम अप्रियम' सत्य बोलो और प्रिय बोलो। अप्रिय सत्य नहीं बोलना चाहिए। सत्य बोलना स्वयं में एक अत्यंत ही दुष्कर कार्य है। लोग सच बोलने से बचना चाहते हैं। मैं इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं जब झूठ बोलना अपरिहार्य हो जाता है। मेरी सोच अलग है। मैं समझता हूँ कि सत्य बोलना सबसे आसान कार्य है क्योंकि जैसे एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलना पड़ता है वैसा सत्य बोलने में नहीं है। झूठ बोलने की अपनी समस्याएं हैं एक झूठ को छिपाने के लिए कितने झूठ पर झूठ बोलने पड़ते हैं। सत्य बोलना आसान होने पर भी लोग सत्य बोलने से परहेज करना पसंद करते हैं। दुनिया में शायद ही ऐसा कोई हो जो हमेशा सच ही बोलता हो। बहुसंख्यक लोगों का मानना है कि सत्य हमेशा कड़वा होता है। कड़वा सत्य शायद ही कोई हज़म कर पाता हो। कड़वा सत्य सुनना कोई पसंद नहीं करता। तो क्या मूक रहा जाए? मौनव्रत धारण करना तो अत्याचार, अन्याय और भ्रष्टाचार को मौन समर्थन देने के समान होगा।

Friday, 5 December 2014

गुनाहों से बचें और नेकी करते रहे- यह सभी धर्म कहते है. मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना. यदि आप सच में ऐसा करते हैं तो आप फरिस्ता हैं. आप उन सारे धार्मिक कठमुल्लाओं से ऊपर हैं. आमीन.

Monday, 1 December 2014

गौहर खान के 'छोटे कपड़े' पर एक युवक ने मारा थप्पड़
'छोटे कपड़े' पर गौहर को मारा थप्पड़
बॉलिवुड ऐक्टर गौहर खान को एक रिऐलिटी शो की रिकॉर्डिंग के दौरान मौजूद एक दर्शक ने थप्पड़ मार दिया और उनके धर्म के साथ-साथ उनके पहनावे पर भी टिप्पणी की। वहां मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने बाद में उस युवक को दबोच कर पुलिस के हवाले कर दिया।

रविवार देर शाम गोरेगांव स्थित फिल्म सीटी में एक रिऐलिटी शो के रिकॉर्डिंग के दौरान शो की महिला एंकर गौहर खान के साथ एक युवक ने छेड़खानी और मारपीट की। आरोपी युवक का नाम मोहम्मद अकिल मलिक (24 साल) बताया जा रहा है।

Sunday, 30 November 2014

विश्व एड्स दिवस



आज विश्व एड्स दिवस है। एड्स एक खतरनाक बीमारी है, मूलतः असुरक्षित यौन संबंध बनाने से एड्स के जीवाणु शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इस बीमारी का काफी देर बाद पता चलता है और मरीज भी एचआईवी टेस्ट के प्रति सजग नहीं रहते, इसलिए अन्य बीमारी का भ्रम बना रहता है।
भारत में यह बीमारी असुरक्षित यौन संबंधों के कारण फैल रही है, इसका प्रतिशत 85 है। भारत में गाड़ियों के ड्राइवर इसे तेजी से फैलाने का काम कर रहे हैं। कई लोगों को इसकी जानकारी नहीं है कि यह किस तरह फैलती है और इससे बचने के लिए क्या उपाय करना चाहिए। अमेरिका में समलैंगिकता के कारण यह तेजी से फैली।

योनि मैथुन की बनिस्बत गुदा मैथुन इसे फैलाने में ज्यादा सहायक होता है। इसका कारण यह है कि गुदा की म्यूकोजा यानी झिल्ली अत्यंत नाजुक होती है और झिल्ली क्षतिग्रस्त होने पर वायरस खून में शीघ्र पहुँच जाते हैं।


एड्स के कोई खास लक्षण नहीं होते, सामान्यतः अन्य बीमारियों में होने वाले लक्षण ही होते हैं, जैसे- वजन में कमी होना, 30-35 दिन से ज्यादा डायरिया रहना, लगातार बुखार बना रहना प्रमुख लक्षण होते हैं।

एचआईवी नामक विषाणु सीधे श्वेत कोशिकाओं पर आक्रमण कर शरीर के अंतस्थ में उपस्थित आनुवंशिक तत्व डीएनए में प्रवेश कर जाता है, जहाँ इनमें गुणात्मक वृद्धि होती है। इन विषाणुओं की बढ़ी हुई संख्या दूसरी श्वेत कणिकाओं पर आक्रमण करती है।



कुछ लोग सुदूर देश से आकर हमारे धर्म और संस्कृति को अपनाते हैं और यहीं के होकर रह जाते हैं। एक हम हैं जो अपने ही धर्म और संस्कृति में मीन- मेख निकालते हैं। हमें अपने देश से प्रेम होनी होनी चाहिए और अपने संस्कृति पर गर्व महसूस होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं है तो हम सामाजिक नहीं हैं। एक बार प्रेम से बोलिए जय हो भारत माता की..!!!

Saturday, 22 November 2014

ये घटना बचपन की है -
हमारे शिक्षक हमें अंग्रेजी में Essay लिखने के तरीके बता रहे थे। कहे कि अगर इससे मिलता-जुलता कुछ भी आये तो आप सुधार करके लिख लेना। सबसे पहले उन्होंने गाय पर Essay लिखना बताया। Cow is a four footed animal. she has two horns, four legs,two eyes and one tail. उसके बाद एक्जाम के डेट आ गए। एग्जाम में गाय की जगह जवाहरलाल नेहरु आ गया। हमने लिखना चालू किया- Jawaharlal nehru is a four footed animal. she has two horns,four legs,two eyes and one tail.
शुभ प्रभात !!!
लोक रीति- रिवाज समाज के बेहतरी के लिए होते हैं। परन्तु कई बार हम इन वर्जनाओं की वजह से उन्मुक्त हो नहीं पाते। मन में ख्याल आता है कि लोग क्या कहेंगें। इस चक्कर में आदमी या औरत कोई भी हो, मन मर्जी से जी नहीं पाते। कभी- कभी यह कुंठा का रूप ले लेता है।

Wednesday, 19 November 2014



कुछ तुम झूठ बोलो 
कुछ हम झूठ बोलें 
किसने देखा है प्यार को।
कुछ हम महसूस करें 
कुछ तुम महसूस करो 
इसी ग़लतफ़हमी में शायद
कुछ रहम हो जाये प्यार को।
कुछ तुम झूठ बोलो
कुछ हम झूठ बोलें
किसने देखा है प्यार को।

- महेंद्र तिवारी 

Monday, 17 November 2014

 
जितना प्यार और सम्मान आपने दिया, उसका हकदार मोदी नहीं है. मैं यह प्यार और सम्मान देश के सवा सौ करोड़ लोगों को समर्पित करता हूं. यह नजारा पूरे हिंदुस्तान को आंदोलित कर रहा है- सिडनी में पीएम मोदी

Wednesday, 12 November 2014

घोर कलयुग आ गया . ये नजारा दिल्ली के झंडेवालान मेट्रो स्टेशन का है, जहां शनिवार शाम हिंदू सेना के कार्यकर्ता और किस ऑफ लव अभियान के समर्थक आमने सामने आ गये. जय श्री राधे कृष्णा.
मेरे हिसाब से व्यक्तित्व में स्पष्टता अवश्य होनी चाहिए। न काहू से दोस्ती न काहू से बैर। बैर ना हो इसलिए दोस्ती की डोर शक्तिशाली होनी चाहिए। दोस्ती के लिए बिना तर्क सहमती भी जतानी पड़ती है। क्योंकि दोस्ती के खातिर सब कुछ त्याज्य होता है। स्पस्ट व्यक्तित्व वाले सहज ही मित्र हो जाया करते हैं। उनकी क़द्र उनके दुश्मन भी करने लगते हैं। पूरा परिवेश उर्जावान हो उठता है।आप सभी दोस्त मेरे लिए प्रेरणाश्रोत हैं। आभार आपका।

Sunday, 9 November 2014

कई लोग कहते है 'I don't believe in God and all'. लेकिन उनके घर में देवी - देवता के फोटो अवश्य देखने को मिल जाते हैं । फिर शरमा कर बोलेंगे वो तो पत्नी करती है।

Saturday, 8 November 2014

मित्रों ! कई फेसबुकिया फ्रेंड्स कोई देवी – देवता का तस्वीर डालकर यह लिखते हैं कि अगर अभी लाईक करेंगे तो दो मिनट के अन्दर फायदा होगा या असर दिखेगा प्लीज़ भगवान को तो बख्श दो उन्हें फेसबुकिया मत बनाओ मैं पूछता हूँ-अगर आपको इतना ही ईश्वर प्रेम है तो कृपया नजदीकी मंदिर में पहुँच जाएँ और सबके लिए प्रार्थना करें प्रेम में दिखावा क्यों ? वो भी परमात्मा से चालाकी ?

Thursday, 6 November 2014

कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे- मसि कागद छूवो नहीं, कलम गही नहिं हाथ। संत कबीर ने स्वयं ग्रंथ नहीं लिखे, मुँह से भाखे और उनके शिष्यों ने उसे लिख लिया। लेकिन आजकल के ज़माने में एक्सपोजर चाहिए। क्यों ? यदि आपकी रचना का चिल्ला चिल्लाकर प्रसार नहीं हुआ तो बेकार गया समझो।

Wednesday, 5 November 2014

प्यारे हिन्दुस्तानी भाइयों एवं बहनों !
सोशल नेटवर्क साईट का कुछ लोग दुरूपयोग कर साम्प्रदायिकता और नफरत को बढ़ावा दे रहे हैं। कई लोग गाय की क्षत-विक्षत फोटो डालकर ये लिखते हैं कि हमारे देश के मुसलमानों से खतरा है। ये मुसलमान हमारी माँ की हत्या कर रहे हैं । मगर आप जब अपनी माँ (गाय) के दूध में पानी मिला कर बेचते हो या इंजेक्शन से दूध निकलते हो उस समय हिंदुत्व खतरे में नहीं पड़ता ? अपने घर की माँ को जब जीवन भर उपेक्षित रखते हो उस समय हिंदुत्व की शान बढ़ती है ? हमारे धर्म में बकरे की बलि दी जाती है ये गलत नहीं है ? सब धर्म के अपने नियम, अपने विश्वास हैं। मुसलमान भी किसी से कम नहीं हैं। आप लोग आबादी बढ़ाकर अपने मजहब को बचा लेने की बात करते हैं । सारी दुनिया खर्चे में कटौती की बात करती है ताकि जीवन स्तर सुधर सके और आप उसको बढ़ावा देना चाहते हैं। अपने धर्म के दलितों और वंचितों को उठाओ, उनकी मदद करो। हिन्दू-मुसलमान की बात पर लड़ना छोड़ो। सोचो किस तरह से हम और आगे बढ़ सकते हैं, उन्नति कर सकते हैं।
एक बार एक गरीब आदमी ने भगवान बुद्ध से पूछा "मैं इतना क्यों गरीब हूँ?", बुद्ध ने कहा "तुम गरीब हो क्योंकि तुमने देना नहीं सीखा" । गरीब आदमी ने कहा "परन्तु मेरे पास तो देने के लिए कुछ भी नहीं है ?" बुद्ध ने कहा, "तुम्हारा चेहरा: एक मुस्कान दे सकता है, तुम्हारा मुँह- किसी की प्रशंसा कर सकता है या दूसरों को सुकून पहुंचाने के लिए दो मीठे बोल बोल सकता है, तुम्हारे हाथ- किसी जरूरतमंद की सहायता कर सकते हैं। और तुम कहते हो कि तुम्हारे पास देने के लिए कुछ भी नहीं है"? दरअसल हम में से कोई भी गरीब नहीं हैं। परमात्मा ने सबको एक जैसा बनाया आत्मा की गरीबी ही वास्तविक गरीबी है। पाने का हक उसी को है जो देना जानता है। वास्तव में कुछ देने के लिए दिल बड़ा होना कहिये, हैसियत नहीं
मैने पूछा चाँद से के देखा है कही, मेरे यार सा हसीन
चाँद ने कहा, चाँदनी की कसम, नहीं, नहीं, नहीं
मैने ये हिजाब तेरा ढूँढा, हर जगह शवाब तेरा ढूँढा
कलियों से मिसाल तेरी पूछी, फूलों में जवाब तेरा ढूँढा
मैंने पूछा बाग से फ़लक हो या ज़मीं, ऐसा फूल है कही
बाग ने कहा, हर कली की कसम, नहीं, नहीं, नहीं
चाल है के मौज की रवानी, जुल्फ है के रात की कहानी
होठ हैं के आईने कंवल के, आँख है के मयकदों की रानी
मैंने पूछा जाम से, फलक हो या ज़मीन, ऐसी मय भी है कही
जाम ने कहा, मयकशी की कसम, नहीं, नहीं, नहीं
खूबसुरती जो तूने पाई, लूट गयी खुदा की बस खुदाई
मीर की ग़ज़ल कहू तुझे मैं, या कहू ख़याम ही रुबाई
मेने जो पूछू शायरों से ऐसा दिलनशी कोई शेर है कही
शायर कहे, शायरी की कसम, नहीं, नहीं, नहीं
चित्रपट : अब्दुल्लाह (१९८०)

Tuesday, 4 November 2014

लघु कथा -



‘आत्महत्या या हत्या एक कायरता है’


एक गाँव में एक मजदूर औरत रहती थी। एक दिन परेशान होकर वह अपने पति से बोली। एक तो हमारा दो वक्त का खाना पूरा नहीं होता है और ऊपर से हमारी बेटी साँप की तरह बड़ी होती जा रही है। गाँव के मनचले इसे बुरी नज़र से देखते हैं। अगर जल्दी ही इसकी शादी नहीं हुई तो हम कहीं के नहीं रहेंगे। भगवान गरीबों को ही बेटी क्यों देता है ? गरीबी की हालत में हम इसकी शादी कैसे करेंगे ? बाप भी विचार में पड़ गया। बात सोलह आने सही था। कुछ दिन बाद गाँव के ही एक दबंग के बेटे द्वारा अपनी लड़की को बूरी नजर से घूरते हुए देखा, तो माँ-बाप बिफर गए। परन्तु कमजोरी वश कुछ कर नहीं सके।

दोनों ने दिल पर पत्थर रख कर एक फैसला लिया कि कल बेटी को मार कर जंगल में गाड़ देंगे। दुसरे दिन का सूरज निकला, माँ ने लड़की को खूब लाड - प्यार किया, अच्छे से नहलाया, बार - बार उसका सर चूमने लगी। यह सब देख कर लड़की बोली : माँ मुझे कहीं दूर भेज रहे हो क्या ? वर्ना आज तक आपने मुझे ऐसे कभी प्यार नहीं किया, माँ केवल चुप रही और रोने लगी।
तभी उसका बाप हाथ में फावड़ा और चाकू लेकर आया। माँ ने लड़की को सीने से लगाकर बाप के साथ रवाना कर दिया। रास्ते में चलते – चलते बाप के पैर में कांटा चुभ गया, बाप एक दम से निचे बैठ गया, बेटी से देखा नहीं गया। उसने तुरंत कांटा निकालकर फटी चुनरी का एक हिस्सा पैर पर बांध दिया। बाप बेटी दोनों एक जंगल में पहुंचे। बाप फावड़ा लेकर एक गड्ढा खोदने लगा। बेटी सामने बेठे - बेठे देख रही थी, थोड़ी देर बाद गर्मी के कारण बाप को पसीना आने लगा। बेटी बाप के पास गयी और पसीना पोछने के लिए अपनी चुनरी दी। बाप ने धक्का देकर बोला, 'तू दूर जाकर बैठ।' थोड़ी देर बाद बाप गड्ढा खोदते - खोदते थक गया।

बेटी दूर से बैठे - बैठे देख रही थी। जब उसको लगा कि पिताजी शायद थक गये तो पास आकर बोली -पिताजी आप थक गये है, लाओ फावड़ा दो मैं खोद देती हूँ गड्ढा, आप थोडा आराम कर लो। मुझसे आप की तकलीफ देखी नहीं जाती। यह सुनकर बाप ने अपनी बेटी को गले से लगा लिया। उसकी आँखों से आंसू बहने लगे। उसका दिल पसीज गया। बाप बोला : ‘बेटा मुझे माफ़ कर दे, यह गड्ढा में तेरे लिए ही खोद रहा था और तू मेरी चिंता करती है, अब जो होगा सो होगा, तू हमेशा मेरे कलेजे का टुकड़ा बन कर रहेगी। में खूब मेहनत करूँगा और तेरी शादी धूम धाम से करूँगा।‘ !! आत्महत्या या हत्या एक कायरता है और कन्या की हत्या करना तो सबसे बड़ा पाप है। आज मैं यह बात समझ गया हूँ। सुख - दुःख तो अपना साथी है। संघर्ष ही जीवन है। – महेंद्र तिवारी
I don’t know dictionaries what explains about difference between “Complete” and “Finished”. Some people say there is no difference. Let me tell you one difference. When you marry with right woman, you are complete and when you marry with wrong woman you are finished ! When your wife catches you with another woman you are Completely Finished !!
मैं जब भी ऑनलाइन होता हूँ तो सबसे पहले अपने दोस्तों को देखता हूँ कि कौन-कौन ऑनलाइन है । कोई जरूरी नहीं कि मैं उनसे चैटिंग करूं। मैं अपने किसी भी महिला मित्र को इन्बोक्स के ज़रिये चैट कर उन्हें परेशां नहीं करना चाहता। कारन कि लोग बुरा मान जाते हैं । लेकिन जब कुछ परिचित नहीं दिखते तो उनका कुशल क्षेम पूछने की आवश्यकता महसूस होती है। क्या एक दोस्त होने के नाते इतना भी हक नहीं होनी चाहिए कि हम कुशल क्षेम पूछ सकें ? आप विज्ञ लोगों से प्रतिक्रिया अपेक्षित है।
कुछ लोग ऐसे होते हैं जो ना कोई लाइक, ना कोई कमेन्ट करते है और ना ही कोई मूवमेंट। बस थोडा देर के लिए उगते हैं ऑनलाइन फिर बूझ जाते हैं। एक साल से फ्रेंड्स पोर्टफोलियो में जगह दिया । ना कोई प्रॉफिट, ना कोई लॉस ? ये भी कोई दोस्ती हुआ ? कभी न कभी फंड मैनेजर को पोर्टफोलियो में तो हेर-फेर करना ही पड़ेगा। आप क्या कहते हैं ? मार दिया जाय कि छोड़ दिया जाय ?
पुरुष सत्तात्मक समाज में यूँ तो पुरुष की प्रधानता तो होती ही है लेकिन नारी प्रताड़ना के लिए अकेले पुरुष को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। कई मामलों में पुरुष महिलाओं को मदद ही पहुंचाते हैं। अगर किसी घर में कोई कन्या जन्म ले ले तो सबसे ज्यादा दुखी औरतें ही होती हैं। पुत्र मोह तो औरतों को ज्यादा होता है । यह कैसी बिडम्बना है कि एक औरत ही औरत की दुश्मन बन जाती है और नाम बदनाम पुरुष का होता है। क्या समाज को सही दिशा देने में स्त्री का हाथ नहीं होता? माँ तो हमारी पहली शिक्षक होती है। कहते है एक औरत शिक्षित रहे तो पूरा परिवार शिक्षित हो जाता है। मुझे तो लगता है समाज को बदलने में औरत का महत्वपूर्ण योगदान है। आप क्या कहते हैं ?
आकर्षण कभी उम्र का ख्याल नहीं रखता। साठ साल बाद भी रेखा को लोग आज भी पसंद करते हैं । श्री बाल कृष्ण कहते हैं - राधिका गोरी से , ब्रज की छोरी से मैया करा दो मेरा ब्याह।
Like

इक लम्हे में उन्होंने जिंदगी सँवार दी 
इक लम्हे में उन्होंने जिंदगी उजाड़ दी। 
कसूर उनका नहीं वो तो हमारा था; 
जो उन लम्हों में हमने जिंदगी गुजार दी।।
रेलगाड़ी की Normal Speed 110-140 Kmph होती है। अगर रेल ड्राइवर एक मिनट के लिए भी सो जाये या उसकी आँख लग जाये तो कितने यात्रियों की जान जा सकती है? परंतु रेल ड्राइवर बिना आँखें झपकाये 300-400 KM गाड़ी चलाते हैं। हम AC में या स्लीपर में बड़े आराम से सो कर जाते हैं और रेल ड्राइवर ? सामान्यतया आदमी 1-2 घंटे में बाथरूम जाता है लेकिन रेल ड्राइवर जब गाड़ी रुकेगी तभी। लगभग 4-5 घंटे बाद जाते हैं, क्योंकि इंजन में बाथरूम नहीं है। दिपावली पर सभी दोस्त अपने घर जाते हैं और रेल ड्राइवर के लिए ? रेलवे ने 200 SPECIAL Trains चलाई हैं लोगों को घर पहुंचाने के लिए। Running Staff के अवकाश एक महीने के लिए बंद कर दिये जाते हैं। रेल ड्राइवर को 10 दिन बाद Rest मिलते हैं। भारतीय रेलवे में 30% लोको पायलट की कमी है फिर भी गाड़ियाँ समय पर चल रही हैं। रेल ड्राइवर 3-4 दिन तक परिवार से दूर रहता है। अभी हाल ही में गोरखपुर मे Train Accident हुआ था जिसके रेल ड्राइवर से लगातार 18 रातों से रात में गाड़ी चलवाई जा रही थी। लगातार 12-15 घंटे Duty करनी पड़ती है। रेलवे प्रशासन सब जानता है फिर दोषी कौन ?
रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि अठिलैहें लोग सब, बांटी न लैहें कोय॥
मेरे हिसाब से अपने मन की व्यथा किसी से मत कहो..सिवाय तीन के-
• माता पिता से,
• गुरु से और
• फेसबुकिया फ्रेंड से
गुरु तो आजकल मिलते नहीं। लेकिन माता- पिता सभी खुशनसीबों के पास होते हैं। इसलिए जब कभी मन उदास हो या पीड़ा असह्य हो जाए तो माता-पिता के सिवाय किसी के साथ साझा नहीं करना चाहिए। हाँ फेसबुकिया फ्रेंड कुछ दुःख दर्द जरूर साझा करते हैं।
भेड़ बकरियों की तरह लोग रेल में चलने को मजबूर हैं। पूरा किराया देने के बावजूद टायलेट में सफ़र कर रहे हैं लोग। जो भी हो रेल में सुधार पहली दफा लालू जी ने किया था। अब तो तत्काल के नाम पर पैसा ऐंठने वाली संस्था बन गयी है रेलवे। अगर आकस्मिक यात्रा करनी पड़े तो भगवान भरोसे होगी आपकी यात्रा। उसमें रेलवे आपकी कोई मदद नहीं कर सकता, वह तो दंड के साथ केवल टिकट दे सकता है। क्या यह कम है रेलवे की व्यवस्था आजादी के इतने सालों बाद ? सरकार कोई भी हो, रेलवे में सुधार की अपार आवश्यकता है। परन्तु कब और कैसे होगा यह रेलवे भी नहीं बता सकता।
निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी छवाय। कबीर का यह वाणी बहुत सुन्दर है परन्तु ऐसे कितने लोग हैं जिन्हें अपनी निंदा अच्छी लगती है। शायद बहुत कम। ऐसा व्यवहार तो सिर्फ महापुरुष या कोई देवी ही कर सकती हैं। यह आम आदमी के बस में नहीं है। क्योंकि इन्द्रियों पर नियंत्रण सबसे मुश्किल है ।
औरत के कई रूप होते हैं। वह कभी बेटी के रूप में लक्ष्मी बनकर हमारे घर आती है, तो कभी बहना बनकर स्नेह लुटाती है। कभी प्रेमिका बन हमारे साथ घूमने जाती है, कभी पत्नी बनकर हमारी जीवन-संगिनी हो जाती है। कभी माँ बन ममता का आँचल लहराती है। औरत के हर एक रूप का महत्व है, वो अपने हर रूप में समाज के साथ है। परन्तु फिर भी नारी इस समाज में अपने आप को महफूज क्यों नहीं पाती ?

साहित्य कलश